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1. | मूर्ख अपने मनमें कहता है, “परमेश्वर नहीं है।” मूर्ख जन तो ऐसे कार्य करते हैं जो भ्रष्ट और घृणित होते हैं। उनमें से कोई भी भले काम नहीं करता है। |
2. | यहोवा आकाश से नीचे लोगों को देखता है, कि कोई विवेकी जन उसे मिल जाये। विवेकी मनुष्य परमेश्वर की ओर सहायता पाने के लिये मुड़ता है। |
3. | किन्तु परमेश्वर से मुड़ कर सभी दूर हो गये हैं। आपस में मिल कर सभी लोग पापी हो गये हैं। कोई भी जन अच्छे कर्म नहीं कर रहा है! |
4. | मेरे लोगों को दुष्टों ने नष्ट कर दिया है। वे दुर्जन परमेश्वर को नहीं जानते हैं। दुष्टों के पास खाने के लिये भरपूर भोजन है। ये जन यहोवा की उपासना नहीं करते। |
5. | ये दुष्ट मनुष्य निर्धन की सम्मति सुनना नहीं चाहते। ऐसा क्यों है? क्योंकि दीन जन तो परमेश्वर पर निर्भर है। |
6. | किन्तु दुष्ट लोगों पर भय छा गया है। क्यों? क्योंकि परमेश्वर खरे लोगों के साथ है। |
7. | सिय्योन पर कौन जो इस्राएल को बचाता है? वह तो यहोवा है, जो इस्राएल की रक्षा करता है! यहोवा के लोगों को दूर ले जाया गया और उन्हें बलपूर्वक बन्दी बनाया गया। किन्तु यहोवा अपने भक्तों को वापस छुड़ा लायेगा। तब याकूब (इस्राएल) अति प्रसन्न होगा। |
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