Psalms (105/150)  

1. यहोवा का धन्यवाद करो! तुम उसके नाम की उपासना करो। लोगों से उनका बखान करो जिन अद्भुत कामों को वह किया करता है।
2. यहोवा के लिये तुम गाओ। तुम उसके प्रशंसा गीत गाओ। उन सभी आश्चर्यपूर्ण बातों का वर्णन करो जिनको वह करता है।
3. यहोवा के पवित्र नाम पर गर्व करो। ओ सभी लोगों जो यहोवा के उपासक हो, तुम प्रसन्न हो जाओ।
4. सामर्थ्य पाने को तुम यहोवा के पास जाओ। सहारा पाने को सदा उसके पास जाओ।
5. उन अद्भुत बातों को स्मरण करो जिनको यहोवा करता है। उसके आश्चर्य कर्म और उसके विवेकपूर्ण निर्णयों को याद रखो।
6. तुम परमेश्वर के सेवक इब्राहीम के वंशज हो। तुम याकूब के संतान हो, वह व्यक्ति जिसे परमेश्वर ने चुना था।
7. यहोवा ही हमारा परमेश्वर है। सारे संसार पर यहोवा का शासन है।
8. परमेश्वर की वाचा सदा याद रखो। हजार पीढ़ियों तक उसके आदेश याद रखो।
9. इब्राहीम के साथ परमेश्वर ने वाचा बाँधा था! परमेश्वर ने इसहाक को वचन दिया था।
10. परमेश्वर ने याकूब (इस्राएल) को व्यवस्था विधान दिया। परमेश्वर ने इस्राएल के साथ वाचा किया। यह सदा सर्वदा बना रहेगा।
11. परमेश्वर ने कहा था, “कनान की भूमि मैं तुमको दूँगा। वह धरती तुम्हारी हो जायेगी।”
12. परमेश्वर ने वह वचन दिया था, जब इब्राहीम का परिवार छोटा था और वे बस यात्री थे जब कनान में रह रहे थे।
13. वे राष्ट्र से राष्ट्र में, एक राज्य से दूसरे राज्य में घूमते रहे।
14. किन्तु परमेश्वर ने उस घराने को दूसरे लोगों से हानि नहीं पहुँचने दी। परमेश्वर ने राजाओं को सावधान किया कि वे उनको हानि न पहुँचाये।
15. परमेश्वर ने कहा था, “मेरे चुने हुए लोगों को तुम हानि मत पहूँचाओ। तुम मेरे कोई नबियों का बुरा मत करो।”
16. परमेश्वर ने उस देश में अकाल भेजा। और लोगों के पास खाने को पर्याप्त खाना नहीं रहा।
17. किन्तु परमेश्वर ने एक व्यक्ति को उनके आगे जाने को भेजा जिसका नाम यूसुफ था। यूसुफ को एक दास के समान बेचा गया था।
18. उन्होंने यूसुफ के पाँव में रस्सी बाँधी। उन्होंने उसकी गर्दन में एक लोहे का कड़ा डाल दिया।
19. यूसुफ को तब तक बंदी बनाये रखा जब तक वे बातें जो उसने कहीं थी सचमुच घट न गयी। यहोवा ने सुसन्देश से प्रमाणित कर दिया कि यूसुफ उचित था।
20. मिस्र के राजा ने इस तरह आज्ञा दी कि यूसुफ के बंधनों से मुक्त कर दिया जाये। उस राष्ट्र के नेता ने कारागार से उसको मुक्त कर दिया।
21. यूसुफ को अपने घर बार का अधिकारी बना दिया। यूसुफ राज्य में हर वस्तु का ध्यान रखने लगा।
22. यूसुफ अन्य प्रमुखों को निर्देश दिया करता था। यूसुफ ने वृद्ध लोगों को शिक्षा दी।
23. फिर जब इस्राएल मिस्र में आया। याकूब हाम के देश में रहने लगा।
24. याकूब के वंशज बहुत से हो गये। वे मिस्र के लोगों से अधिक बलशाली बन गये।
25. इसलिए मिस्री लोग याकूब के घराने से घृणा करने लगे। मिस्र के लोग अपने दासों के विरुद्ध कुचक्र रचने लगे।
26. इसलिए परमेश्वर ने निज दास मूसा और हारुन जो नबी चुना हुआ था, भेजा।
27. परमेश्वर ने हाम के देश में मूसा और हारुन से अनेक आश्चर्य कर्म कराये।
28. परमेश्वर ने गहन अधंकार भेजा था, किन्तु मिस्त्रियों ने उनकी नहीं सुनी थी।
29. सो फिर परमेश्वर ने पानी को खून में बदल दिया, और उनकी सब मछलियाँ मर गयी।
30. और फिर बाद में मिस्त्रियों का देश मेढ़कों से भर गया। यहाँ तक की मेढ़क राजा के शयन कक्ष तक भरे।
31. परमेश्वर ने आज्ञा दी मक्खियाँ और पिस्सू आये। वे हर कहीं फैल गये।
32. परमेश्वर ने वर्षा को ओलों में बदल दिया। मिस्त्रियों के देश में हर कहीं आग और बिजली गिरने लगी।
33. परमेश्वर ने मिस्त्रियों की अंगूर की बाड़ी और अंजीर के पेड़ नष्ट कर दिये। परमेश्वर ने उनके देश के हर पेड़ को तहस नहस किया।
34. परमेश्वर ने आज्ञा दी और टिड्डी दल आ गये। टिड्डे आ गये और उनकी संखया अनगिनत थी।
35. टिड्डी दल और टिड्डे उस देश के सभी पौधे चट कर गये। उन्होंने धरती पर जो भी फसलें खड़ी थी, सभी को खा डाली।
36. फिर परमेश्वर ने मिस्त्रियों के पहलौठी सन्तान को मार डाला। परमेश्वर ने उनके सबसे बड़े पुत्रों को मारा।
37. फिर परमेश्वर निज भक्तों को मिस्र से निकाल लाया। वे अपने साथ सोना और चाँदी ले आये। परमेश्वर का कोई भी भक्त गिरा नहीं न ही लड़खड़ाया।
38. परमेश्वर के लोगों को जाते हुए देख कर मिस्र आनन्दित था, क्योंकि परमेश्वर के लोगों से वे डरे हुए थे।
39. परमेश्वर ने कम्बल जैसा एक मेघ फैलाया। रात में निज भक्तों को प्रकाश देने के लिये परमेश्वर ने अपने आग के स्तम्भ को काम में लाया।
40. लोगों ने खाने की माँग की और परमेश्वर उनके लिये बटेरों को ले आया। परमेश्वर ने आकाश से उनको भरपूर भोजन दिया।
41. परमेश्वर ने चट्टान को फाड़ा और जल उछलता हुआ बाहर फूट पड़ा। उस मरुभूमि के बीच एक नदी बहने लगी।
42. परमेश्वर ने अपना पवित्र वचन याद किया। परमेश्वर ने वह वचन याद किया जो उसने अपने दास इब्राहीम को दिया था।
43. परमेश्वर अपने विशेष को मिस्र से बाहर निकाल लाया। लोग प्रसन्न गीत गाते हुए और खुशियाँ मनाते हुए बाहर आ गये!
44. फिर परमेश्वर ने निज भक्तों को वह देश दिया जहाँ और लोग रह रहे थे। परमेश्वर के भक्तों ने वे सभी वस्तु पा ली जिनके लिये औरों ने श्रम किया था।
45. परमेश्वर ने ऐसा इसलिए किया ताकि लोग उसकी व्यवस्था माने। परमेश्वर ने ऐसा इसलिए किया ताकि वे उसकी शिक्षाओं पर चलें। यहोवा के गुण गाओ!

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