Proverbs (5/31)  

1. हे मेरे पुत्र, तू मेरी बुद्धिमता की बातों पर ध्यान दे। मेरे अर्न्तदृष्टि के वचन को लगन से सुन।
2. जिससे तेरा भले बुरे का बोध बना रहे और तेरे होठों पर ज्ञान संरक्षित रहे।
3. क्योंकि व्यभिचारिणी के होंठ मधु टपकाते हैं और उसकी वाणी तेल सी फिसलन भरी है।
4. किन्तु परिणाम में यह ज़हर सी कढ़वी और दुधारी तलवार सी तेज धार है!
5. उसके पैर मृत्यु के गर्त की तरफ बढ़ते हैं और वे सीधे कब्र तक ले जाते हैं!
6. वह कभी भी जीवन के मार्ग की नहीं सोचती! उसकी रोहें खोटी हैं! किन्तु, हाय, उसे ज्ञात नहीं!
7. अब मेरे पुत्रों, तुम मेरी बात सुनों। जो कुछ भी मैं कहता हूँ, उससे मुँह मत मोड़ो।
8. तुम ऐसी राह चलो, जो उससे सुदूर हो। उसके घर—द्वार के पास तक मत जाना।
9. नहीं तो तुम अपनी उत्तम शक्ति को दूसरों के हाथों में दे बैठोगे और अपने जीवन वर्षकिसी ऐसे को जो क्रूर है।
10. ऐसा न हो, तुम्हारे धन पर अजनबी मौज करें। तुम्हारा परिश्रम औरों का घर भरे।
11. जब तेरा माँस और काया चूक जायेंगे तब तुम अपने जीवन के आखिरी छोर पर रोते बिलखते यूँ ही रह जाओगे।
12. और तुम कहोगे, “हाय! अनुशासन से मैंने क्यों बैर किया क्यों मेरा मन सुधार की उपेक्षा करता रहा
13. मैंने अपने शिक्षकों की बात नहीं मानी अथवा मैंने अपने प्रशिक्षकों पर ध्यान नहीं दिया।
14. मैं सारी मण्डली के सामने, महानाश के किनारे पर आ गया हूँ।”
15. तू अपने जल—कुंड से ही पानी पिया कर और तू अपने ही कुँए से स्वच्छ जल पिया कर।
16. तू ही कह, क्या तेरे जलस्रोत राहों में इधर उधर फैल जायें और तेरी जलधारा चौराहों पर फैले
17. ये तो बस तेरी हो, एकमात्र तेरी ही। उसमे कभी किसी अजनबी का भाग न हो।
18. तेरा स्रोत धन्य रहे और अपने जवानी की पत्नी के साथ ही तू आनन्दित रह का रसपान।
19. तेरी वह पत्नी, प्रियतमा, प्राणप्रिया, मनमोहक हिरणी सी तुझे सदा तृप्त करे। उसके माँसल उरोज और उसका प्रेम पाश तुझको बाँधे रहे।
20. हे मेरे पुत्र, कोई व्यभिचारिणी तुझको क्यों बान्ध पाये और किसी दूसरे की पत्नी को तू क्यों गले लगाये
21. यहोवा तेरी राहें पूरी तरह देखता है और वह तेरी सभी राहें परखता रहता है।
22. दुष्ट के बुरे कर्म उसको बान्ध लेते हैं। उसका ही पाप जाल उसको फँसा लेता है।
23. वह बिना अनुशासन के मर जाता है। उसके ये बड़े दोष उसको भटकाते हैं।

  Proverbs (5/31)