Proverbs (2/31)  

1. हे मेरे पुत्र, यदि तू मेरे बोध वचनों को ग्रहण करे और मेरे आदेश मन में संचित करे,
2. और तू बुद्धि की बातों पर कान लगाये, मन अपना समझदारी में लगाते हुए
3. और यदि तू अर्न्तदृष्टि के हेतु पुकारे, और तू समझबूझ के निमित्त चिल्लाये,
4. यदि तू इसे ऐसे ढूँढे जैसे कोई मूल्यवान चाँदी को ढूँढता है, और तू इसे ऐसे ढूँढ, जैसे कोई छिपे हुए कोष को ढूँढता है
5. तब तू यहोवा के भय को समझेगा और परमेश्वर का ज्ञान पायेगा।
6. क्योंकि यहोवा ही बुद्धि देता है और उसके मुख से ही ज्ञान और समझदारी की बातें फूटती है।
7. उसके भंडार में खरी बुद्धि उनके लिये रहती जो खरे हैं, और उनके लिये जिनका चाल चलन विवेकपूर्ण रहता है। वह जैसे एक ढाल है।
8. न्याय के मार्ग की रखवाली करता है और अपने भक्तों की वह राह संवारता है।
9. तभी तू समझेगा की नेक क्या है, न्यायपूर्ण क्या है, और पक्षपात रहित क्या है, यानी हर भली राह।
10. बुद्धि तेरे मन में प्रवेश करेगी और ज्ञान तेरी आत्मा को भाने लगेगा।
11. तुझको अच्छे—बुरे का बोध बचायेगा, समझ बूझ भरी बुद्धि तेरी रखवाली करेगी,
12. बुद्धि तुझे कुटिलों की राह से बचाएगी जो बुरी बात बोलते हैं।
13. अंधेरी गलियों में आगे बढ़ जाने को वे सरल—सीधी राहों को तजते रहते हैं।
14. वे बुरे काम करने में सदा आनन्द मनाते हैं, वे पापपूर्ण कर्मों में सदा मग्न रहते हैं।
15. उन लोगों पर विश्वास नहीं कर सकते। वे झूठे हैं और छल करने वाले हैं। किन्तु तेरी बुद्धि और समझ तुझे इन बातों से बचायेगी।
16. यह बुद्धि तुझको वेश्या और उसकी फुसलाती हुई मधुर वाणी से बतायेगी।
17. जिसने अपने यौवन का साथी त्याग दिया जिससे वाचा कि उपेक्षा परमेश्वर के समक्ष किया था।
18. क्योंकि उसका निवास मृत्यु के गर्त में गिराता है और उसकी राहें नरक में ले जाती हैं।
19. जो भी निकट जाता है कभी नहीं लौट पाता और उसे जीवन की राहें कभी नहीं मिलती!
20. अत: तू तो भले लोगों के मार्ग पर चलेगा और तू सदा नेक राह पर बना रहेगा।
21. क्योंकि खरे लोग ही धरती पर बसे रहेंगे और जो विवेकपूर्ण हैं वे ही टिक पायेंगे।
22. किन्तु जो दुष्ट है वे तो उस देश से काट दिये जायेगें।

  Proverbs (2/31)