| Proverbs (1/31) → |
| 1. | दाऊद के पुत्र और इस्राएल के राजा सुलैमान के नीतिवचन। यह शब्द इसलिये लिखे गये हैं, |
| 2. | ताकि मनुष्य बुद्धि को पाये, अनुशासन को ग्रहण करे, जिनसे समझ भरी बातों का ज्ञान हो, |
| 3. | ताकि मनुष्य विवेकशील, अनुशासित जीवन पाये, और धर्म—पूर्ण, न्याय—पूर्ण, पक्षपातरहित कार्य करे, |
| 4. | सरल सीधे जन को विवेक और ज्ञान तथा युवकों को अच्छे बुरे का भेद सिखा (बता) पायें। |
| 5. | बुद्धिमान उन्हें सुन कर निज ज्ञान बढ़ावें और समझदार व्यक्ति दिशा निर्देश पायें, |
| 6. | ताकि मनुष्य नीतिवचन, ज्ञानी के दृष्टाँतों को और पहेली भरी बातों को समझ सकें। |
| 7. | यहोवा का भय मानना ज्ञान का आदि है किन्तु मूर्ख जन तो बुद्धि और अनुशासन को तुच्छ मानते हैं। |
| 8. | हे मेरे पुत्र, अपने पिता की शिक्षा पर ध्यान दे और अपनी माता की नसीहत को मत भूल। |
| 9. | वे तेरा सिर सजाने को मुकुट और शोभायमान करने तेरे गले का हार बनेंगे। |
| 10. | हे मेरे पुत्र, यदि पापी तुझे बहलाने फुसलाने आयें उनकी कभी मत मानना। |
| 11. | और यदि वे कहें, “आजा हमारे साथ! आ, हम किसी के घात में बैठे! आ निर्दोष पर छिपकर वार करें! |
| 12. | आ, हम उन्हें जीवित ही सारे का सारा निगल जायें वैसे ही जैसे कब्र निगलती हैं। जैसे नीचे पाताल में कहीं फिसलता चला जाता है। |
| 13. | हम सभी बहुमूल्य वस्तुयें पा जायेंगे और अपने इस लूट से घर भर लेंगे। |
| 14. | अपने भाग्य का पासा हमारे साथ फेंक, हम एक ही बटुवे के सहभागी होंगे!” |
| 15. | हे मेरे पुत्र, तू उनकी राहों पर मत चल, तू अपने पैर उन पर रखने से रोक। |
| 16. | क्योंकि उनके पैर पाप करने को शीघ्र बढ़ते, वे लहू बहाने को अति गतिशील हैं। |
| 17. | कितना व्यर्थ है, जाल का फैलाना जबकि सभी पक्षी तुझे पूरी तरह देखते हैं। |
| 18. | जो किसी का खून बहाने प्रतीक्षा में बैठे हैं वे अपने आप उस जाल में फँस जायेंगे! |
| 19. | जो ऐसे बुरे लाभ के पीछे पड़े रहते हैं उन सब ही का यही अंत होता है। उन सब के प्राण हर ले जाता है; जो इस बुरे लाभ को अपनाता है। |
| 20. | बुद्धि! तो मार्ग में ऊँचे चढ़ पुकारती है, चौराहों पर अपनी आवाज़ उठाती है। |
| 21. | शोर भरी गलियों के नुक्कड़ पर पुकारती है, नगर के फाटक पर निज भाषण देती है: |
| 22. | “अरे भोले लोगों! तुम कब तक अपना मोह सरल राहों से रखोगे? उपहास करनेवालों, तुम कब तक उपहासों में आनन्द लोगे? अरे मूर्खो, तुम कब तक ज्ञान से घृणा करोगे? |
| 23. | यदि मेरी फटकार तुम पर प्रभावी होती तो मैं तुम पर अपना हृदय उंडेल देती और तुम्हें अपने सभी विचार जना देती। |
| 24. | “किन्तु क्योंकि तुमने तो मुझको नकार दिया जब मैंने तुम्हें पुकारा, और किसी ने ध्यान न दिया, जब मैंने अपना हाथ बढ़ाया था। |
| 25. | तुमने मेरी सब सम्मत्तियाँ उपेक्षित कीं और मेरी फटकार कभी नहीं स्वीकारीं! |
| 26. | इसलिए, बदले में, मैं तेरे नाश पर हसूँगी। मैं उपहास करूँगी जब तेरा विनाश तुझे घेरेगा! |
| 27. | जब विनाश तुझे वैसे ही घेरेगा जैसे भीषण बबूले सा बवण्डर घेरता है, जब विनाश जकड़ेगा, और जब विनाश तथा संकट तुझे डुबो देंगे। |
| 28. | “तब, वे मुझको पुकारेंगे किन्तु मैं कोई भी उत्तर नहीं दूँगी। वे मुझे ढूँढते फिरेगें किन्तु नहीं पायेंगे। |
| 29. | क्योंकि वे सदा ज्ञान से घृणा करते रहे, और उन्होंने कभी नहीं चाहा कि वे यहोवा से डरें। |
| 30. | क्योंकि वे, मेरा उपदेश कभी नहीं धारण करेंगे, और मेरी ताड़ना का तिरस्कार करेंगे। |
| 31. | वे अपनी करनी का फल अवश्य भोगेंगे, वे अपनी योजनाओं के कुफल से अघायेंगे! |
| 32. | “सीधों की मनमानी उन्हें ले डूबेगी, मूर्खों का आत्म सुख उन्हें नष्ट कर देगा। |
| 33. | किन्तु जो मेरी सुनेगा वह सुरक्षित रहेगा, वह बिना किसा हानि के भय से रहित वह सदा चैन से रहेगा।” |
| Proverbs (1/31) → |