← Jeremiah (4/52) → |
1. | यह सन्देश यहोवा का है। “इस्राएल, यदि तुम लौट आना चाहो, तो मेरे पास आओ। अपनी देव मूर्तियों को फेंको। मुझसे दूर न भटको। |
2. | यदि तुम वे काम करोगे तो प्रतिज्ञा करने के लिये मेरे नाम का उपयोग करने योग्य बनोगे, तुम यह कहने योग्य होगे, ‘जैसा कि यहोवा शाश्वत है।’ तुम इन शब्दों का उपयोग सच्चे, ईमानदारी भरे और सही तरीके से करने योग्य बनोगे। यदि तुम ऐसा करोगे तो राष्ट्र यहोवा द्वारा वरदान पाएगा और वे यहोवा द्वारा किये गए कामों को गर्व से बखान करेंगे।” |
3. | यहूदा राष्ट्र के मनुष्यों और यरूशलेम नगर से, यहोवा जो कहता है, वह यह है: “तुम्हारे खेतों में हर नहीं चले हैं। खेतों में हल चलाओ। काँटो में बीज न बोओ। |
4. | यहोवा के लोग बनो, अपने हृदय को बदलो। यहूदा के लोगों और यरूशलेम के निवासियों, यदि तुम नहीं बदले, तो मैं बहुत क्रोधित होऊँगा। मेरा क्रोध आग की तरह फैलेगा और मेरा क्रोध तुम्हें जला देगा और कोई व्यक्ति उस आग को बुझा नहीं पाएगा। यह क्यों होगा क्योंकि तुमने बुरे काम किये हैं।” उत्तर दिशा से विध्वंस |
5. | यहूदा के लोगों में इस सन्देश की घोषणा करो: यरूशलेम नगर के हर एक व्यक्ति से कहो, “सारे देश में तुरही बजाओ।” जोर से चिल्लाओ और कहो, “एक साथ आओ, हम सभी रक्षा के लिये दृढ़ नगरों को भाग निकलें।” |
6. | सिय्योन की ओर सूचक ध्वज उठाओ, अपने जीवन के लिये भागो, प्रतीक्षा न करो। यह इसलिये करो कि मैं उत्तर से विध्वंस ला रहा हूँ। मैं भयंकर विनाश ला रहा हूँ। |
7. | एक सिंह अपनी गुफा से निकला है, राष्ट्रों का विध्वंसक तेज कदम बढ़ाना आरम्भ कर चुका है। वह तुम्हारे देश को नष्ट करने के लिये अपना घर छोड़ चुका है। तुम्हारे नगर ध्वस्त होंगे। उनमें रहने वाला कोई व्यक्ति नहीं बचेगा। |
8. | अत: टाट के कपड़े पहनो, रोओ, क्यों क्योंकि यहोवा हम पर बहुत क्रोधित है। |
9. | यह सन्देश यहोवा का है, “ऐसे समय यह होता है। राजा और प्रमुख साहस खो बैंठेंगे, याजक डरेंगे, नबियों का दिल दहलेगा।” |
10. | तब मैंने अर्थात् यिर्मयाह ने कहा, “मेरे स्वामी यहोवा, तूने सचमुच यहूदा और यरूशलेम के लोगों को धोखे में रखा है। तूने उनसे कहा, ‘तुम शान्तिपूर्वक रहोगे।’ किन्तु अब उनके गले तर तलवार खिंची हुई है।” |
11. | उस समय एक सन्देश यहूदा और यरूशलेम के लोगों को दिया जाएगा: “नंगी पहाड़ियों से गरम आँधी चल रही है। यह मरुभूमि से मेरे लोगों की ओर आ रही है। यह वह मन्द हवा नहीं जिसका उपयोग किसान भूसे से अन्न निकालने के लिये करते हैं। |
12. | यह उससे अधिक तेज हवा है और मुझसे आ रही है। अब मैं यहूदा के लोगों के विरुद्ध अपने न्याय की घोषणा करूँगा।” |
13. | देखो! शत्रु मेघ की तरह उठ रहा है, उसके रथ चक्रवात के समान है। उसके घोड़े उकाब से तेज हैं। यह हम सब के लिये बुरा होगा, हम बरबाद हो जाएंगे। |
14. | यरूशलेम के लोगों, अपने हृदय से बुराइयों को धो डालो। अपने हृदयों को पवित्र करो, जिससे तुम बच सको। बुरी योजनायें मत बनाते चलो। |
15. | दान देश के दूत की वाणी, जो वह बोलता है, ध्यान से सुनो। कोई एप्रैम के पहाड़ी प्रदेश से बुरी खबर ला रहा है। |
16. | “इस राष्ट्र को इसका विवरण दो। यरूशलेम के लोगों में इस खबर को फैलाओ। शत्रु दूर देश से आ रहे हैं। वे शत्रु यहूदा के नगरों के विरुद्ध युद्ध—उद्घोष कर रहे हैं। |
17. | शत्रुओं ने यरूशलेम को ऐसे घेरा है जैसे खेत की रक्षा करने वाले लोग हो। यहूदा, तुम मेरे विरुद्ध गए, अत: तुम्हारे विरुद्ध शत्रु आ रहे हैं!” यह सन्देश यहोवा का है! |
18. | “जिस प्रकार तुम रहे और तुमने पाप किया उसी से तुम पर यह विपत्ति आई। यह तुम्हारे पाप ही हैं जिसने जीवन को इतना कठिन बनाया है। यह तुम्हारा पाप ही है जो उस पीड़ा को लाया जो तुम्हारे हृदय को बेधती है।” |
19. | आह, मेरा दुःख और मेरी परेशानी मेरे पेट में दर्द कर रही हैं। मेरा हृदय धड़क रहा है। हाय, मैं इतना भयभीत हूँ। मेरा हृदय मेरे भीतर तड़प रहा है। मैं चुप नहीं बैठ सकता। क्यों क्योंकि मैंने तुरही का बजना सुना है। तुरही सेना को युद्ध के लिये बुला रही है। |
20. | ध्वंस के पीछे विध्वंस आता है। पूरा देश नष्ट हो गया है। अचानक मेरे डेरे नष्ट कर दिये गये हैं, मेरे परदे फाड़ दिये गए हैं। |
21. | हे यहोवा, मैं कब तक युद्ध पताकायें देखुँगा युद्ध की तुरही को कितने समय सुनूँगा |
22. | परमेश्वर ने कहा, “मेरे लोग मूर्ख हैं। वे मुझे नहीं जानते। वे बेवकूफ बच्चे हैं। वे समझते नहीं। वे पाप करने में दक्ष हैं, किन्तु वे अच्छा करना नहीं जानते।” विनाश आ रहा है |
23. | मैंने धरती को देखा। धरती खाली थी, इस पर कुछ नहीं था। मैंने गगन को देखा, और इसका प्रकाश चला गया था। |
24. | मैंने पर्वतों पर नजर डाली और वे काँप रहे थे। सभी पहाड़ियाँ लड़खड़ा रही थीं। |
25. | मैंने ध्यान से देखा, किन्तु कोई मनुष्य नहीं था, आकाश के सभी पक्षी उड़ गए थे। |
26. | मैंने देखा कि सुहावना प्रदेश मरुभूमि बन गया था। उस देश के सभी नगर नष्ट कर दिये गये थे। यहोवा ने यह कराया। यहोवा और उसके प्रचण्ड क्रोध ने यह कराया। |
27. | यहोवा ये बातें कहता है: “पूरा देश बरबाद हो जाएगा। (किन्तु मैं देश को पूरी तरह नष्ट नहीं करूँगा।) |
28. | अत: इस देश के लोग मेरे लोगों के लिये रोयेंगे। आकाश अँधकारपूर्ण होगा। मैंने कह दिया है, और बदलूँगा नहीं। मैंने एक निर्णय किया है, और मैं अपना विचार नहीं बदलूँगा।” |
29. | यहूदा के लोग घुड़सवारों और धनुर्धारियों का उद्घोष सुनेंगे, और लोग भाग जायेंगे। कुछ लोग गुफाओं में छिपेंगे कुछ झाड़ियों में तथा कुछ चट्टानों पर चढ़ जाएंगे। यहूदा के सभी नगर खाली हैं। उनमें कोई नहीं रहता। |
30. | हे यहूदा, तुम नष्ट कर दिये गये हो, तुम क्या कर रहे हो तुम अपने सुन्दरतम लाल वस्त्र क्यों पहनते हो तुम अपने सोने के आभूषण क्यों पहने हो तुम अपनी आँखों में अन्जन क्यों लगाते हो। तुम अपने को सुन्दर बनाते हो, किन्तु यह सब व्यर्थ है। तुम्हारे प्रेमी तुमसे घृणा करते हैं, वे मार डालने का प्रयत्न कर रहे हैं। |
31. | मैं एक चीख सुनता हूँ जो उस स्त्री की चीख की तरह है जो बच्चा जन्म रही हो। यह चीख उस स्त्री की तरह है जो प्रथम बच्चे को जन्म रही हो। यह सिय्योन की पुत्री की चीख है। वह अपने हाथ प्रार्थना में यह कहते हुए उठा रही है, “आह! मैं मूर्छित होने वाली हूँ, हत्यारे मेरे चारों ओर हैं!” |
← Jeremiah (4/52) → |