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1. | “यहूदा के गडरियों (प्रमुखों) के लिये यह बहुत बुरा होगा। वे गडेरिये भेड़ों को नष्ट कर रहें हैं। वे भेड़ों को मेरी चरागाह से चारों ओर भगा रहे हैं।” यह सन्देश यहोवा का है। |
2. | वे गडेरिये (प्रमुख) मेरे लोगों के लिये उत्तरदायी हैं, और इस्राएल का परमेश्वर यहोवा उन गडेरियों से यह कहता है, “गडेरियों (प्रमुखों), तुमने मेरी भेड़ों को चारों ओर भगाया है। तुमने उन्हें चले जाने को विवश किया है। तुमने उनकी देखभाल नहीं रखी है। किन्तु मैं तुम लोगों को देखूँगा, मैं तुम्हें उन बुरे कामों के लिये दण्ड दूँगा जो तुमने किये हैं।” यह सन्देश यहोवा के यहाँ से है। |
3. | “मैंने अपनी भेड़ों (लोगों) को विभिन्न देशों में भेजा। किन्तु मैं अपनी उन भेड़ों (लोगों) को एक साथ इकट्ठी करुँगा जो बची रह गई हैं और मैं उन्हें उनकी चरागाह (देश) में लाऊँगा। जब मेरी भेड़ें (लोग) अपनी चरागाह (देश) में वापस आएंगी तो उनके बहुत बच्चे होंगे और उनकी संख्या बढ़ जाएगी। |
4. | मैं अपनी भेड़ों के लिये नये गडेरिये (प्रमुख) रखूँगा वे गडेरिये (प्रमुख) मेरी भेड़ों (लोगों) की देखभाल करेंगे और मेरी भेड़ें (लोग) भयभीत या डरेंगी नहीं। मेरी भेड़ों (लोगों) में से कोई खोएगी नहीं।” यह सन्देश यहोवा का है। |
5. | यह सन्देश यहोवा का है: “समय आ रहा है जब मैं दाऊद के कुल में एक सच्चा ‘अंकुर’ उगाऊँगा। वह ऐसा राजा होगा जो बुद्धिमत्ता से शासन करेगा और वह वही करेगा जो देश में उचित और न्यायपूर्ण होगा। |
6. | उस सच्चे अंकुर के समय में यहूदा के लोग सुरक्षित रहेंगे और इस्राएल सुरक्षित रहेगा। उसका नाम यह होगा यहोवा हमारी सच्चाई हैं। |
7. | यह सन्देश यहोवा का है, “अत: समय आ रहा है, “जब लोग भविष्य में यहोवा के नाम पर पुरानी प्रतिज्ञा फिर नहीं करेंगे। पुरानी प्रतिज्ञा यह है: ‘यहोवा जीवित है, यहोवा ही वह है जो इस्राएल के लोगों को मिस्र देश से बाहर लाया था।’ |
8. | किन्तु अब लोग कुछ नया कहेंगे, ‘यहोवा जीवित है, यहोवा ही वह है जो इस्राएल के लोगों को उत्तर के देश से बाहर लाया। वह उन्हें उन सभी देशों से बाहर लाया जिनमें उसने उन्हें भेजा था।’ तब इस्राएल के लोग अपने देश में रहेंगे।” |
9. | नबियों के लिये सन्देश है: “मैं बहुत दु:खी हूँ, मेरा हृदय विदीर्ण हो गया है। मेरी सारी हड्डियाँ काँप रही हैं। मैं (यिर्मयाह) मतवाले के समान हूँ। क्यों यहोवा और उसके पवित्र सन्देश के कारण। |
10. | यहूदा देश ऐसे लोगों से भरा है जो व्यभिचार का पाप करते हैं। वे अनेक प्रकार से अभक्त हैं। यहोवा ने भूमि को अभिशाप दिया और वह बहुत सूख गई। पौधे चरगाहों में सूख रहे हैं और मर रहे हैं। खेत मरुभूमि से हो गए हैं। नबी पापी हैं, वे नबी अपने प्रभाव और अपनी शक्ति का उपयोग गलत ढंग से करते हैं। |
11. | “नबी और याजक तक भी पापी हैं। मैंने उन्हें अपने मन्दिर में पाप करते देखा है।” यह सन्देश यहोवा का है। |
12. | अत: मैं उन्हें अपना सन्देश देना बन्द करुँगा। यह ऐसा होगा मानो वे अन्धकार में चलने को विवश किये गए हों। यह ऐसा होगा मानो नबियों और याजकों के लिये फिसलन वाली सड़क हो। उस अंधेरी जगह में वे नबी और याजक गिरेंगे। मैं उन पर आपत्तियाँ ढाऊँगा। उस समय मैं उन नबियों और याजकों को दण्ड दूँगा।” यह सन्देश यहोवा का है। |
13. | “मैंने शोमरोन के नबियों को कुछ बुरा करते देखा। मैंने उन नबियों को झूठे बाल देवता के नाम भविष्यवाणी करते देखा। उन नबियों ने इस्राएल के लोगों को यहोवा से दूऱ भटकाया। |
14. | मैंने यहूदा के नबियों को यरूशलेम में बहुत भयानक कर्म करते देखा। इन नबियों ने व्यभिचार करने का पाप किया। उन्होंने झूठी शिक्षाओं पर विश्वास किया, और उन झूठे उपदेशों को स्वीकार किया। उन्होंने दुष्ट लोगों को पाप करते रहने के लिये उत्साहित किया। अत: लोगों ने पाप करना नहीं छोड़ा। वे सभी लोग सदोम नगर की तरह हैं। यरूशलेम के लोग मेरे लिये अमोरा नगर के समान हैं।” |
15. | अत: सर्वशक्तिमान यहोवा नबियों के बारे में ये बातें कहता है, “मैं उन नबियों को दण्ड दूँगा। वह दण्ड विषैला भोजन पानी खाने पीने जैसा होगा। नबियों ने आध्यात्मिक बीमारी उत्पन्न की और वह बीमारी पूरे देश में फैल गई। अत: मैं उन नबियों को दण्ड दूँगा। वह बीमारी यरूशलेम में नबियों से आई।” |
16. | सर्वशक्तिमान यहोवा यह सब कहता है: “वे नबी तुमसे जो कहें उसकी अनसुनी करो। वे तुम्हें मूर्ख बनाने का प्रयत्न कर रहे हैं। वे नबी अर्न्तदर्शन करने की बात करते हैं। किन्तु वे अपना अर्न्तदर्शन मुझसे नहीं पाते। उनका अर्न्तदर्शन उनके मन की उपज है। |
17. | कुछ लोग यहोवा के सच्चे सन्देश से घृणा करते हैं। अत: वे नबी उन लोगों से भिन्न भिन्न कहते हैं। वे कहते हैं, ‘तुम शान्ति से रहोगे। कुछ लोग बहुत हठी हैं। वे वही करते हैं जो वे करना चाहते हैं।’ अत: वे नबी कहते हैं, ‘तुम्हारा कुछ भी बुरा नहीं होगा।’ |
18. | किन्तु इन नबियों में से कोई भी स्वर्गीय परिषद में सम्मिलित नहीं हुआ है। उनमें से किसी ने भी यहोवा के सन्देश को न देखा है न ही सुना है। उनमें से किसी ने भी यहोवा के सन्देश पर गम्भीरता से ध्यान नहीं दिया है। |
19. | अब यहोवा के यहाँ से दण्ड आँधी की तरह आएगा। यहोवा का क्रोध बवंडर की तरह होगा। यह उन दुष्ट लोगों के सिरों को कुचलता हुआ आएगा। |
20. | यहोवा का क्रोध तब तक नहीं रूकेगा जब तक वे जो करना चाहते हैं, पूरा न कर लें। जब वह दिन चला जाएगा तब तुम इसे ठीक ठीक समझोगे। |
21. | मैंने उन नबियों को नहीं भेजा। किन्तु वे अपने सन्देश देने दौड़ पड़े। मैंने उनसे बातें नहीं की। किन्तु उन्होंने मेरे नाम के उपदेश दिये। |
22. | यदि वे मेरी स्वर्गीय परिषद में सम्मिलित हुए होते तो उन्होंने यहूदा के लोगों को मेरा सन्देश दिया होता। उन्होंने लोगों को बुरे कर्म करने से रोक दिया होता। उन्होंने लोगों को पाप कर्म करने से रोक दिया होता।” |
23. | यह सन्देश यहोवा का है। “मैं परमेश्वर हूँ, यहाँ वहाँ और सर्वत्र। मैं बहुत दूर नहीं हूँ। |
24. | कोई व्यक्ति किसी छिपने के स्थान में अपने को मुझसे छिपाने का प्रयत्न कर सकता है। किन्तु उसे देख लेना मेरे लिये सरल है। क्यों क्योंकि मैं स्वर्ग और धरती दोनों पर सर्वत्र हूँ!” यहोवा ने ये बातें कहीं। |
25. | “ऐसे नबी हैं जो मेरे नाम पर झूठा उपदेश देते हैं। वे कहते हैं, ‘मैंने एक स्वप्न देखा है! मैंने एक स्वप्न देखा है!’ मैंने उन्हें वे बातें करते सुना है। |
26. | यह कब तक चलता रहेगा वे नबी झूठ ही का चिन्तन करते हैं और तब वे उस झूठ का उपदेश लोगों को देते हैं। |
27. | ये नबी प्रयत्न करते हैं कि यहूदा के लोग मेरा नाम भूल जायें। वे इस काम को, आपस में एक दूसरे से कल्पित स्वप्न कहकर कर रहे हैं। ये लोग मेरे लोगों से मेरा नाम वैसे ही भुलवा देने का प्रयत्न कर रहे हैं जैसे उनके पूर्वज मुझे भूल गए थे। उनके पूर्वज मुझे भूल गए और उन्होंने असत्य देवता बाल की पूजा की। |
28. | मूसा वह नहीं है जो गेहूँ है। ठीक उसी प्रकार उन नबियों के स्वप्न मेरे सन्देश नहीं हैं। यदि कोई व्यक्ति अपने स्वप्नों को कहना चाहता है तो उसे कहने दो। किन्तु उस व्यक्ति को मेरे सन्देश को सच्चाई से कहने दो जो मेरे सन्देश को सुनता है। |
29. | मेरा सन्देश ज्वाला की तरह है। यह उस हथौड़े की तरह है जो चट्टान को चूर्ण करता है। यह सन्देश यहोवा का है।” |
30. | “इसलिए मैं झूठे नबियों के विरुद्ध हूँ। क्योंकि वे मेरे सन्देश को एक दूसरे से चुराने में लगे रहते हैं।” यह सन्देश यहोवा का है। |
31. | “वे अपनी बात कहते हैं और दिखावा यह करते हैं कि वह यहोवा का सन्देश है। |
32. | मैं उन झूठे नबियों के विरुद्ध हूँ जो झूठे स्वप्न का उपदेश देते हैं।” यह सन्देश यहोवा का है। “वे अपने झूठ और झूठे उपदेशों से मेरे लोगों को भटकाते हैं। मैंने उन नबियों को लोगों को उपदेश देने के लिये नहीं भेजा। मैंने उन्हें अपने लिये कुछ करने का आदेश कभी नहीं दिया। वे यहूदा के लोगों की सहायता बिल्कुल नहीं कर सकते।” यह सन्देश यहोवा का है। |
33. | “यहूदा के लोग, नबी अथवा याजक तुमसे पूछ सकते हैं, ‘यिर्मयाह, यहोवा की घोषणा क्या है?’ तुम उन्हें उत्तर दोगे और कहोगे, ‘तुम यहोवा के लिये दुर्वह भार हो और मैं यहोवा उस दुर्वह भार को नीचे पटक दूँगा।’ यह सन्देश यहोवा का है। |
34. | “कोई नबी या कोई याजक अथवा संभवत: लोगों में से कोई कह सकता है, ‘यह यहोवा से घोषणा है।’ उस व्यक्ति ने यह झूठ कहा, अत: मैं उस व्यक्ति और उसके पूरे परिवार को दण्ड दूँगा। |
35. | जो तुम आपस में एक दूसरे से कहोगे वह यह है: ‘यहोवा ने क्या उत्तर दिया?’ या ‘यहोवा ने क्या कहा?’ |
36. | किन्तु तुम पुन: इस भाव को कभी नहीं दुहराओगे। यहोवा की घोषणा (दुर्वह भार)। यह इसलिये कि यहोवा का सन्देश किसी के लिये दुर्वह भार नहीं होना चाहिये। किन्तु तुमने हमारे परमेश्वर के शब्द को बदल दिया। वह सजीव परमेश्वर है अर्थात् सर्वशक्तिमान यहोवा। |
37. | “यदि तुम परमेश्वर के सन्देश के बारे में जानना चाहते हो तब किसी नबी से पूछो, ‘यहोवा ने तुम्हें क्या उत्तर दिया?’ या ‘यहोवा ने क्या कहा?’ |
38. | किन्तु यह न कहो, ‘यहोवा के यहाँ से घोषणा (दुर्वह भार) क्या है?’ यदि तुम इन शब्दों का उपयोग करोगे तो यहोवा तुमसे यह सब कहेगा, ‘तुम्हें मेरे सन्देश को “यहोवा के यहाँ से घोषणा” (दुर्वह भार) नहीं कहना चाहिये था। मैंने तुमसे उन शब्दों का उपयोग न करने को कहा था। |
39. | किन्तु तुमने मेरे सन्देश को दुर्वह भार कहा, “अत: मैं तुम्हें एक दुर्वह भार की तरह उठाऊँगा और अपने से दूर पटक दूँगा। मैंने तुम्हारे पूर्वजों को यरूशलेम नगर दिया था। किन्तु अब मैं तुम्हें और उस नगर को अपने से दूर फेंक दूँगा। |
40. | मैं सदैव के लिए तुम्हें कलंकित बना दूँगा। तुम कभी अपनी लज्जा को नहीं भूलोगे।’” |
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