Genesis (29/50)  

1. तब याकूब ने अपनी यात्रा जारी रखी। वह पूर्व के प्रदेश में गया।
2. याकूब ने दृष्टि डाली, उसने मैदान में एक कुआँ देखा। वहाँ कुएँ के पास भेड़ों के तीन रेवड़े पड़े हुई थे। यही वह कुआँ था जहाँ ये भेड़ें पानी पीती थीं। वहाँ एक बड़े शिला से कुएँ का मुँह ढका था।
3. जब सभी भेड़ें वहाँ इकट्ठी हो जातीं तो गड़ेंरिये चट्टान को कुएँ के मुँह पर से हटाते थे। तब सभी भेड़े उसका जल पी सकती थीं। जब भेड़ें पी चुकती थीं तब गड़ेरिये शिला को फिर अपनी जगह पर रख देते थे।
4. याकूब ने वहाँ गड़ेंरियों से कहा, “भाईयो, आप लोग कहाँ के हैं?” उन्होंने उत्तर दिया, “हम हारान के है।”
5. तब याकूब ने कहा, “क्या आप लोग नाहोर के पुत्र लाबान को जानते हैं?” गड़ेंरियों ने जवाव दिया, “हम लोग उसे जानते हैं।”
6. तब याकूब ने पूछा, “वह कुशल से तो है?” उन्होंने कहा, “वे ठीक हैं। सब कुछ बहुत अच्छा है। देखो, वह उसकी पुत्री राहेल अपनी भेड़ों के साथ आ रही है।”
7. याकूब ने कहा, “देखो, अभी दिन है और सूरज डूबने में अभी काफी देर है। रात के लिए जानवरों को इकट्ठे करने का अभी समय नहीं है। इसलिए उन्हें पानी दो और उन्हें मैदान में लौट जाने दो।”
8. लेकिन उस गड़ेरिये ने कहा, “हम लोग यह तब तक नहीं कर सकते जब तक सभी रेबड़े इकट्ठे नहीं हो जाते। तब हम लोग शिला को कुएँ से हटाएंगे और सभी भेड़ें पानी पीएँगी।”
9. याकूब जब तक गड़ेंरियों से बातें कर रहा था तब राहेल अपने पिता की भेड़ों के साथ आई। (राहेल का काम भेड़ों की देखभाल करना था।)
10. राहेल लाबान की पुत्री थी। लाबान, रिबका का भाई था, जो याकूब की माँ थी। जब याकूब ने राहेल को देखा तो जाकर शिला को हटाया और भेड़ों को पानी पिलाया।
11. तब याकूब ने राहेल को चूमा और जोर से रोया।
12. याकूब ने बताया कि मैं तुम्हारे पिता के खानदान से हूँ। उसने राहेल को बताया कि मैं रिबका का पुत्र हूँ। इसलिए राहेल घर को दौड़ गई और अपने पिता से यह सब कहा।
13. लाबान ने अपनी बहन के पुत्र, याकूब के बारे में खबर सुनी। इसलिए लाबन उससे मिलने के लिए दौड़ा। लाबान उससे गले मिला, उसे चूमा और उसे अपने घर लाया। याकूब ने जो कुछ हुआ था, उसे लाबान को बताया।
14. तब लाबान ने कहा, “आश्चर्य है, तुम हमारे खानदान से हो।” अतः याकूब लाबान के साथ एक महीने तक रूका।
15. एक दिन लाबान ने याकूब से कहा, “यह ठीक नहीं है कि तुम हमारे यहाँ बिना बेतन में काम करते रहो। तुम रिश्तेदार हो, दास नहीं। मैं तुम्हें क्या वेतन दूँ?”
16. लाबान की दो पुत्रियाँ थीं। बड़ी लिआ थी और छोटी राहेल।
17. राहेल सुन्दर थी और लिआ की धुंधली आँखें थीं।
18. याकूब राहेल से प्रेम करता था। याकूब ने लाबान से कहा, “यदि तुम मुझे अपनी पुत्री राहेल के साथ विवाह करने दो तो मैं तुम्हारे यहाँ सात साल तक काम कर सकता हूँ।”
19. लाबान ने कहा, “यह उसके लिए अच्छा होगा कि किसी दूसरे के बजाय वह तुझसे विवाह करे। इसलिए मेरे साथ ठहरो।”
20. इसलिए याकूब ठहरा और सात साल तक लाबान के लिए काम करता रहा। लेकिन यह समय उसे बहुत कम लगा क्योंकि वह राहेल से बहुत प्रेम करता था।
21. सात साल के बाद उसने लाबान से कहा, “मुझे राहेल को दो जिससे मैं उससे विवाह करूँ। तुम्हारे यहाँ मेरे काम करने का समय पूरा हो गया।”
22. इसलिए लाबान ने उस जगह के सभी लोगों को एक दावत दी।
23. उस रात लाबान अपनी पुत्री लिआ को याकूब के पास लाया। याकूब और लिआ ने परस्पर शारीरिक सम्बन्ध स्थापित किया।
24. (लाबान ने अपनी पुत्री को, सेविका के रूप में अपनी नौकरानी जिल्पा को दिया।)
25. सबेरे याकूब ने जाना कि वह लिआ के साथ सोया था। याकूब ने लाबान से कहा, “तुमने मुझे धोखा दिया है। मैंने तुम्हारे लिए कठिन परिश्रम इसलिए किया कि मैं राहेल से विवाह कर सकूँ। तुमने मुझे धोखा क्यों दिया?”
26. लाबान ने कहा, “हम लोग अपने देश में छोटी पुत्री का बड़ी पुत्री से पहले विवाह नहीं करने देंगे।
27. किन्तु विवाह के उत्सव को पूरे सप्ताह मनाते रहो और मैं राहेल को भी तुम्हें विवाह के लिए दूँगा। परन्तु तुम्हें और सात वर्ष तक मेरी सेवा करनी पड़ेगी।”
28. इसलिए याकूब ने यही किया और सप्ताह को बिताया। तब लाबान ने अपनी पुत्री राहेल को भी उसे उसकी पत्नी के रूप में दिया।
29. (लाबान ने अपनी पुत्री राहेल की सेविका के रूप में अपनी नौकरानी बिल्हा को दिया।)
30. इसलिए याकूब ने राहेल के साथ भी शारीरिक सम्बन्ध स्थापित किया और याकूब ने राहेल को लिआ से अधिक प्यार किया। याकूब ने लाबान के लिए और सात वर्ष तक काम किया।
31. यहोवा ने देखा कि याकूब लिआ से अधिक राहेल को प्यार करता है। इसलिए यहोवा ने लिआ को इस योग्य बनाया कि वह बच्चों को जन्म दे सके। लेकिन राहेल को कोई बच्चा नहीं हुआ।
32. लिआ ने एक पुत्र को जन्म दिया। उसने उसका नाम रूबेन रखा। लिआ ने उसका यह नाम इसलिए रखा क्योंकि उसने कहा, “यहोवा ने मेरे कष्टों को देखा है। मेरा पति मुझको प्यार नहीं करता, इसलिए हो सकता है कि मेरा पति अब मुझसे प्यार करे।”
33. लिआ फिर गर्भवती हुई और उसने दूसरे पुत्र को जन्म दिया। उसने इस पुत्र का नाम शिमोन रखा। लिआ ने कहा, “यहोवा ने सुना कि मुझे प्यार नहीं मिलता, इसलिए उसने मुझे यह पुत्र दिया।”
34. लिआ फिर गर्भवती हुई और एक और पुत्र को जन्म दिया। उसने पुत्र का नाम लेवी रखा। लिआ ने कहा, “अब निश्चय ही मेरा पति मुझको प्यार करेगा। मैंने उसे तीन पुत्र दिए हैं।”
35. तब लिआ ने एक और पुत्र को जन्म दिया। उसने इस लड़के का नाम यहूदा रखा। लिआ ने उसे यह नाम दिया क्योंकि उसने कहा, “अब मैं यहोवा की स्तुति करूँगी।” तब लिआ को बच्चा होना बन्द हो गया।

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