← Galatians (4/6) → |
1. | मैं कहता हूँ कि उत्तराधिकारी जब तक बालक है तो चाहे सब कुछ का स्वामी वही होता है, फिर भी वह दास से अधिक कुछ नहीं रहता। |
2. | वह अभिभावकों और घर के सेवकों के तब तक अधीन रहता है, जब तक उसके पिता द्वारा निश्चित समय नहीं आ जाता। |
3. | हमारी भी ऐसी ही स्थिति है। हम भी जब बच्चे थे तो सांसारिक नियमों के दास थे। |
4. | किन्तु जब उचित अवसर आया तो परमेश्वर ने अपने पुत्र को भेजा जो एक स्त्री से जन्मा था। और व्यवस्था के अधीन जीता था। |
5. | ताकि वह व्यवस्था के अधीन व्यक्तियों को मुक्त कर सके जिससे हम परमेश्वर के गोद लिये बच्चे बन सकें। |
6. | और फिर क्योंकि तुम परमेश्वर के पुत्र हो, सो उसने तुम्हारे हृदयों में पुत्र की आत्मा को भेजा। वही आत्मा “ हे अब्बा, हे पिता” कहते हुए पुकारती है। |
7. | इसलिए अब तू दास नहीं है बल्कि पुत्र है और क्योंकि तू पुत्र है, इसलिए तुझे परमेश्वर ने अपना उत्तराधिकारी भी बनाया है। |
8. | पहले तुम लोग जब परमेश्वर को नहीं जानते थे तो तुम लोग देवताओं के दास थे। वे वास्तव में परमेश्वर नहीं थे। |
9. | किन्तु अब तुम परमेश्वर को जानते हो, या यूँ कहना चाहिये कि परमेश्वर के द्वारा अब तुम्हें पहचान लिया गया है। फिर तुम उन साररहित, दुर्बल नियमों की ओर क्यों लौट रहे हो। तुम फिर से उनके अधीन क्यों होना चाहते हो? |
10. | तुम किन्हीं विशेष दिनों, महीनों, ऋतुओं और वर्षों को मानने लगे हो। |
11. | तुम्हारे बारे में मुझे डर है कि तुम्हारे लिए जो काम मैंने किया है, वह सारा कहीं बेकार तो नहीं हो गया है। |
12. | हे भाईयों, कृपया मेरे जैसे बन जाओ। देखो, मैं भी तो तुम्हारे जैसा बन गया हूँ, यह मेरी तुमसे प्रार्थना है, ऐसा नहीं है कि तुमने मेरे प्रति कोई अपराध किया है। |
13. | तुम तो जानते ही हो कि अपनी शारीरिक व्याधि के कारण मैंने पहली बार तुम्हें ही सुसमाचार सुनाया था। |
14. | और तुमने भी, मेरी अस्वस्थता के कारण, जो तुम्हारी परीक्षा ली गयी थी, उससे मुझे छोटा नहीं समझा और न ही मेरा निषेध किया। बल्कि तुमने परमेश्वर के स्वर्गदूत के रूप में मेरा स्वागत किया। मानों मैं स्वयं मसीह यीशु ही था। |
15. | सो तुम्हारी उस प्रसन्नता का क्या हुआ? मैं तुम्हारे लिए स्वयं इस बात का साक्षी हूँ कि यदि तुम समर्थ होते तो तुम अपनी आँखें तक निकाल कर मुझे दे देते। |
16. | सो क्या सच बोलने से ही मैं तुम्हारा शत्रु हो गया? |
17. | तुम्हें व्यवस्था के विधान पर चलाना चाहने वाले तुममें बड़ी गहरी रुचि लेते हैं। किन्तु उनका उद्देश्य अच्छा नहीं है। वे तुम्हें मुझ से अलग करना चाहते हैं। ताकि तुम भी उनमें गहरी रुचि ले सको। |
18. | कोई किसी में सदा गहरी रुचि लेता रहे, यह तो एक अच्छी बात है किन्तु यह किसी अच्छे के लिए होना चाहिये। और बस उसी समय नहीं, जब मैं तुम्हारे साथ हूँ। |
19. | मेरे प्रिय बच्चो! मैं तुम्हारे लिये एक बार फिर प्रसव वेदना को झेल रहा हूँ, जब तक तुम मसीह जैसे ही नहीं हो जाते। |
20. | मैं चाहता हूँ कि अभी तुम्हारे पास आ पहुँचू और तुम्हारे साथ अलग ही तरह से बातें करूँ, क्योंकि मैं समझ नहीं पा रहा हूँ कि तुम्हारे लिये क्या किया जाये। |
21. | व्यवस्था के विधान के अधीन रहना चाहने वालों से मैं पूछना चाहता हूँ: क्या तुमने व्यवस्था के विधान का यह कहना नहीं सुना। |
22. | कि इब्राहीम के दो पुत्र थे। एक का जन्म एक दासी से हुआ था और दूसरे का एक स्वतन्त्र स्त्री से। |
23. | दासी से पैदा हुआ पुत्र प्राकृतिक परिस्थितियों में जन्मा था किन्तु स्वतन्त्र स्त्री से जो पुत्र उत्पन्न हुआ था, वह परमेश्वर के द्वारा की गयी प्रतिज्ञा का परिणाम था। |
24. | इन बातों का प्रतीकात्मक अर्थ है: ये दो स्त्रियाँ, दो वाचओं का प्रतीक हैं। एक वाचा सिनै पर्वत से प्राप्त हुआ था जिसने उन लोगों को जन्म दिया जो दासता के लिये थे। यह वाचा हाजिरा से सम्बन्धित है। |
25. | हाजिरा अरब में स्थित सिनै पर्वत का प्रतीक है, वह वर्तमान यरूशलेम की ओर संकेत करती है क्योंकि वह अपने बच्चों के साथ दासता भुगत रही है। |
26. | किन्तु स्वर्ग में स्थित यरूशलेम स्वतन्त्र है। और वही हमारी माता है। |
27. | शास्त्र कहता है: “बाँझ! आनन्द मना, तूने किसी को न जना; हर्ष नाद कर, तुझ को प्रसव वेदना न हुई, और हँसी-खुशी में खिलखिला। क्योंकि परित्यक्ता की अनगिनत संतानें हैं उसकी उतनी नहीं है जो पतिवंती है।” यशायाह 54:1 |
28. | इसलिए भाईयों, अब तुम इसहाक की जैसी परमेश्वर के वचन की संतान हो। |
29. | किन्तु जैसे उस समय प्राकृतिक परिस्थितियों के अधीन पैदा हुआ आत्मा की शक्ति से उत्पन्न हुए को सताता था, वैसी ही स्थिति आज है। |
30. | किन्तु देखो, पवित्र शास्त्र क्या कहता है? “इस दासी और इसके पुत्र को निकाल कर बाहर करो क्योंकि यह दासी पुत्र तो स्वतन्त्र स्त्री के पुत्र के साथ उत्तराधिकारी नहीं होगा।” |
31. | इसीलिए हे भाईयों, हम उस दासी की संतान नहीं हैं, बल्कि हम तो स्वतन्त्र स्त्री की संताने हैं। |
← Galatians (4/6) → |