Ezekiel (42/48)  

1. तब वह व्यक्ति मुझे बाहरी आँगन में ले गया जिसका सामना उत्तर को था। वह उन कमरों में ले गया जो मन्दिर से आँगन के आर—पार और उत्तर के भवनों के आर—पार थे।
2. उत्तर की ओर का भवन सौ हाथ लम्बा और पचास हाथ चौड़ा था।
3. वहाँ छज्जों के तीन मंजिल इन भवनों की दीवारों पर थे। वे एक दूसरे के सामने थे। भीतरी आँगन और बाहरी आँगन के पक्के रास्ते के बीच बीस हाथ खुला क्षेत्र था।
4. कमरों के सामने एक विशाल कक्ष था। वह भीतर पहुँचाता था। यह दस हाथ चौड़ा, सौ हाथ लम्बा था। उनके दरवाजे उत्तर को थे।
5. ऊपर के कमरे अधिक पतले थे क्योंकि छज्जे मध्य और निचली मंजिल से अधिक स्थान घेरे थे।
6. कमरे तीन मंजिलों पर थे। बाहरी आँगन की तरह के उनके स्तम्भ नहीं थे। इसलिये ऊपर के कमरे मध्य और नीचे की मंजिल के कमरों से अधिक पीछे थे।
7. बाहर एक दीवार थी। यह कमरों के समान्तर थी।
8. यह बाहरी आँगन को ले जाती थी। यह कमरों के आर—पार थी। यह पचास हाथ लम्बी थी।
9. इन कमरों के नीचे एक द्वार था जो बाहरी आँगन से पूर्व को ले जाता था।
10. बाहरी दीवार के आरम्भ में, दक्षिण की ओर मन्दिर के आँगन के सामने और मन्दिर के भवन की दीवार के बाहर, कमरे थे। इन कमरों के सामने
11. एक विशाल कक्ष था। वे उत्तर के कमरों के समान थे। दक्षिण के द्वार लम्बाई—चौड़ाई में उतने ही माप वाले थे जितने उत्तर के। दक्षिण के द्वार नाप, रूपाकृति और प्रवेश कक्ष की दृष्टि से उत्तर के द्वारों के सामने थे।
12. दक्षिण के कमरों के नीचे एक द्वार था जो पूर्व की ओर जाता था। यह विशाल—कक्ष में पहुँचाता था। दक्षिण के कमरों के आर—पार एक विभाजक दीवार थी।
13. उस व्यक्ति ने मुझसे कहा, “आँगन के आर—पार वाले दक्षिण के कमरे और उत्तर के कमरे पवित्र कमरे हैं। ये उन याजकों के कमरे हैं जो यहोवा को बलि—भेंट चढ़ाते हैं। वे याजक इन कमरों में अति पवित्र भेंट को खाएंगे। वे सर्वाधिक पवित्र भेंट को वहाँ रखेंगे। क्यों क्योंकि यह स्थान पवित्र है। सर्वाधिक पवित्र भेंट ये हैं: अन्न भेंट, पाप के लिये भेंट और अपराध के लिये भेंट।
14. याजक पवित्र—क्षेत्र में प्रवेश करेंगे। किन्तु बाहरी आँगन में जाने के पहले वे अपने सेवा वस्त्र पवित्र स्थान में रख देंगे। क्यों क्योंकि ये वस्त्र पवित्र है। यदि याजक चाहता है कि वह मन्दिर के उस भाग में जाए जहाँ अन्य लोग हैं तो उसे उन कमरों में जाना चाहिए और अन्य वस्त्र पहन लेना चाहिए।”
15. वह व्यक्ति जब मन्दिर के भीतर की नाप लेना समाप्त कर चुका, तब वह मुझे उस फाटक से बाहर लाया जो पूर्व को था। उसने मन्दिर के बाहर चारों ओर नापा।
16. उस व्यक्ति ने मापदण्ड से, पूर्व के सिरे को नापा। यह पाँच सौ हाथ लम्बा था।
17. उसने उत्तर के सिरे को नापा। यह पाँच सौ हाथ लम्बा था।
18. उसने दक्षिण के सिरे को नापा। यह पाँच सौ हाथ लम्बा था।
19. वह पश्चिम की तरफ चारों ओर गया और इसे नापा। यह पाँच सौ हाथ लम्बा था।
20. उसने मन्दिर को चारों ओर से नापा। दीवार मन्दिर के चारों ओर गई थी। दीवार पाँच सौ हाथ लम्बी और पाँच सौ हाथ चौड़ी थी। यह पवित्र क्षेत्र को अपवित्र क्षेत्र से अलग करती थी।

  Ezekiel (42/48)