← Ezekiel (34/48) → |
1. | यहोवा का वचन मुझे मिला। उसने कहा, |
2. | “मनुष्य के पुत्र, मेरे लिए इस्राएल के गड़ेरियों (प्रमुखों) के विरुद्ध बातें करो। उनसे मेरे लिये बातें करो। उनसे कहो कि स्वामी यहोवा यह कहता है: ‘इस्राएल के गड़ेरियों (प्रमुखों) तुम केवल अपना पेट भर रहे हो। यह तुम्हारे लिये बहुत बुरा होगा। तुम गड़ेरियों, रेवड़ों का पेट क्यों नहीं भरते |
3. | तुम मोटी भेड़ों को खाते हो और अपने वस्त्र बनाने के लिये उनकी ऊन का उपयोग करते हो। तुम मोटी भेड़ को मारते हो, किन्तु तुम रेवड़ का पेट नहीं भरते। |
4. | तुमने दुर्बल को बलवान नहीं बनाया। तुमने रोगी भेड़ की परवाह नहीं की है। तुमने चोट खाई हुई भेड़ों को पट्टी नहीं बाँधी। कुछ भेड़ें भटक कर दूर चली गई और तुम उन्हें खोजने और उन्हें वापस लेने नहीं गए। तुम उन खोई भेड़ों को खोजने नहीं गए। नहीं, तुम क्रूर और कठोर रहे, यही मार्ग था जिस पर तुमने भेड़ों को ले जाना चाहा! |
5. | “‘और अब, भेड़ें बिखर गई हैं क्योंकि कोई गड़ेरिया नहीं था। वे हर एक जंगली जानवर का भोजन बनी। अत: वे बिखर गई। |
6. | मेरी रेवड़ सभी पर्वतों और ऊँची पहाड़ियों पर भटकी। मेरी रेवड़ धरती की सारी सतह पर बिखर गई। कोई भी उनकी खोज और देखभाल करने वाला नहीं था।’” |
7. | अत: तुम गड़ेरियों, यहोवा का वचन सुनो! मेरा स्वामी यहोवा कहता है, |
8. | “मैं अपनी जीवन की शपथ खाकर तुम्हें यह विश्वास दिलाता हूँ। जंगली जानवरों ने मेरी भेड़ों को पकड़ा। हाँ, मेरी रेवड़ सभी जंगली जानवरों का भोजन बन गई। क्यों क्योंकि उनका कोई ठीक गड़ेरिया नहीं था। मेरे गड़ेरियों ने मेरे रेवड़ की खोज नहीं की। उन गड़ेरियों ने भेड़ों को केवल मारा और स्वयं खाया। उन्होंने मेरी रेवड़ का पेट नहीं भरा।” |
9. | अत: तुम गड़ेरियों, यहोवा के सन्देश को सुनो! |
10. | यहोवा कहता है, “मैं उन गड़ेरियों के विरुद्ध हूँ! मैं उनसे अपनी भेड़ें मागूँगा! मैं उन पर आक्रमण करूँगा! वे भविष्य में मेरे गड़ेरिये नहीं रहेंगे! तब गड़ेरिये अपना पेट भी नहीं भर पाएंगे। मैं उनके मुख से अपनी रेवड़ को बचाऊँगा। तब मेरी भेड़ें उनका भोजन नहीं होंगी।” |
11. | मेरा स्वामी यहोवा कहता है, “मैं स्वयं उनका गड़ेरिया बनूँगा। मैं अपनी भेड़ों की खोज करूँगा। मैं उनको ढूँढूंगा। |
12. | यदि कोई गड़ेरिया अपनी भेड़ों के साथ उस समय है जब उसकी भेड़ें दूर भटकने लगी हों तो वह उनको खोजने जाएगा। उसी प्रकार मैं अपनी भेड़ों की खोज करूँगा। मैं अपनी भेड़ों को बचाऊँगा। मैं उन्हें उन स्थानों से लौटाऊँगा जहाँ वे उस बदली तथा अंधेरे में भटक गई थीं। |
13. | मैं उन्हें उन राष्ट्रों से वापस लाऊँगा। मैं उन देशों से उन्हें इकट्ठा करूँगा। मैं उन्हें उनके अपने देश में लाऊँगा। मैं उन्हें इस्राएल के पर्वतों पर, जलस्रोतों के सहारे, उन सभी स्थानों में, जहाँ लोग रहते है, खिलाऊँगा। |
14. | मैं उन्हें घास वाले खेतों में ले जाऊँगा। वे इस्राएल के पर्वतों के ऊँचे स्थानों पर जाएंगी। वहाँ वे अच्छी धरती पर सोएँगी और घास खाएंगी। वे इस्राएल के पर्वत पर भरी—पूरी घास वाली भूमि में चरेंगी। |
15. | हाँ, मैं अपने रेवड़ को खिलाऊँगा और उन्हें विश्राम के स्थान पर ले जाऊँगा।” मेरे स्वामी यहोवा ने यह कहा था। |
16. | “मैं खोई भेड़ की खोज करूँगा। मैं उन भेड़ों को वापस लाऊँगा जो बिखर गई थीं। मैं उन भेड़ों की पट्टी करूँगा जिन्हें चोट लगी थी। मैं कमजोर भेड़ को मजबूत बनाऊँगा। किन्तु मैं उन मोटे और शक्तिशाली गड़ेरियों को नष्ट कर दूँगा। मैं उन्हें वह दण्ड दूँगा जिसके वे पात्र हैं।” |
17. | मेरा स्वामी यहोवा यह कहता है, “और तुम, मेरी रेवड़, मैं प्रत्येक भेड़ के साथ न्याय करूँगा। मैं मेढ़ों और बकरों के बीच न्याय करूँगा। |
18. | तुम अच्छी भूमि पर उगी घास खा सकते हो। अत: तुम उस घास को क्यों कुचलते हो जिसे दूसरी भेड़ें खाना चाहती हैं। तुम पर्याप्त स्वच्छ जल पी सकते हो। अत: तुम उस जल को हिलाकर गन्दा क्यों करते हो, जिसे अन्य भेड़ें पीना चाहती हैं। |
19. | मेरी रेवड़ उस घास को खाएंगी जिसे तुमने अपने पैरों से कुचला और वह पानी पीएंगी जिसे तुमने अपने पैरों से हिलाकर गन्दा कर दिया!” |
20. | अत: मेरा स्वामी यहोवा उनसे कहता है: “मैं स्वयं मोटी और पतली भेड़ों के साथ न्याय करूँगा! |
21. | तुम अपनी बगल से और अपने कन्धों से धक्का देकर और अपनी सींगों से सभी कमजोर भेड़ों को तब तक मार गिरोते हो, जब तक तुम उनको दूर चले जाने के लिये विवश नहीं करते। |
22. | अत: मैं अपनी रेवड़ को बचाऊँगा। वे भविष्य में जंगली जानवरों से नहीं पकड़ी जाएंगीं। मैं प्रत्येक भेड़ के साथ न्याय करूँगा। |
23. | तब मैं उनके उपर एक गड़ेरिया अपने सेवक दाऊद को रखूँगा। वह उन्हें अपने आप खिलाएगा और उनका गड़ेरिया होगा। |
24. | तब मैं यहोवा और स्वामी, उनका परमेश्वर होऊँगा और मेरा सेवक दाऊद उनके बीच रहने वाला शासक होगा। मैं (यहोवा) ने यह कहा है। |
25. | “मैं अपनी भेड़ों के साथ एक शान्ति—सन्धि करूँगा। मैं हानिकर जानवरों को देश से बाहर कर दूँगा। तब भेड़ें मरुभूमि में सुरक्षित रहेंगी और जंगल में सोएंगी। |
26. | मैं भेड़ों को और अपनी पहाड़ी (यरूशलेम) के चारों ओर के स्थानों को आशीर्वाद दूँगा। मैं ठीक समय पर वर्षा करूँगा। वे आशीर्वाद सहित वर्षा करेंगे। |
27. | खेतों में उगने वाले वृक्ष अपने फल देंगे। भूमि अपनी फसल देगी। अत: भेड़ें अपने प्रदेश में सुरक्षित रहेंगी। मैं उनके ऊपर रखे जूवों को तोड़ दूँगा। मैं उन्हें उन लोगों की शक्ति से बचाऊँगा जिन्होंने उन्हें दास बनाया। तब वे जानेंगे कि मैं यहोवा हूँ। |
28. | वे जानवरों की तरह भविष्य में अन्य राष्ट्रों द्वारा बन्दी नहीं बनाये जाएंगे। वे जानवर उन्हें भविष्य में नहीं खाएंगे। अपितु अब वे सुरक्षित रहेंगे। कोई उन्हें आतंकित नहीं करेगा। |
29. | मैं उन्हें कुछ ऐसी भूमि दूँगा जो एक अच्छा उद्यान बनेगी। तब वे उस देश में भूख से पीड़ित नहीं होंगे। वे भविष्य में राष्ट्रों से अपमानित होने का कष्ट न पाएंगे। |
30. | तब वे समझेंगे कि मैं उनका परमेश्वर यहोवा हूँ। तब वे समझेंगे कि मैं उनके साथ हूँ। इस्राएल का परिवार समझेगा कि वे मेरे लोग हैं! मेरे स्वामी यहोवा ने यह कहा था! |
31. | “तुम मेरी भेड़ों, मेरी चरागाह की भेड़ों, तुम केवल मनुष्य हो और मैं तुम्हारा परमेश्वर हूँ।” मेरे स्वामी यहोवा ने यह कहा। |
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