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1. नबियों के समूह ने एलीशा से कहा, “हम लोग वहाँ उस स्थान पर रह रहे हैं। किन्तु वह हम लोगों के लिये बहुत छोटा है।
2. हम लोग यरदन नदी को चलें और कुछ लकड़ियाँ काटें। हम में से प्रत्येक एक लट्ठा लेगा और हम लोग अपने लिये रहने का एक स्थान वहाँ बनायें।” एलीशा ने कहा, “बहुत अच्छा, जाओ और करो।”
3. उनमें से एक व्यक्ति ने कहा, “कृपया हमारे साथ चलें।” एलीशा ने कहा, “बहुत अच्छा, मैं तुम्हारे साथ चलूँगा।”
4. अतः एलीशा नबियों के समूह के साथ गया। जब वे यरदन नदी पर पहुँचे तो उन्होंने कुछ पेड़ काटने आरम्भ किये।
5. किन्तु जब एक व्यक्ति एक पेड़ को काट रहा था तो कुल्हाड़ी का लौह फलक कुल्हाड़ी से निकल गया और पानी में गिर पड़ा। तब वह व्यक्ति चिल्लाया, “हे स्वामी! मैंने वह कुल्हाड़ी उधार ली थी!”
6. परमेश्वर के जन (एलीशा) ने कहा, “वह कहाँ गिरी” उस व्यक्ति ने एलीशा को वह स्थान दिखाया जहाँ लौह फलक गिरा था। तब एलीशा ने एक डंडी काटी और उस डंडी को पानी में फेंक दिया। उस डंडी ने लौह फलक को तैरा दिया।
7. एलीशा ने कहा, “लौह फलक को पकड़ लो।” तब वह व्यक्ति आगे बढ़ा और उसने लौह फलक को ले लिया।
8. अराम का राजा इस्राएल के विरुद्ध युद्ध कर रहा था। उसने सेना के अधिकारियों के साथ परिषद बैठक बुलाई। उसने आदेश दिया, “इस स्थान पर छिप जाओ और इस्राएलियों पर तब आक्रमण करो जब यहाँ से होकर निकलें।”
9. किन्तु परमेश्वर के जन (एलीशा) ने इस्राएल के राजा को एक संदेश भेजा। एलीशा ने कहा, “सावधान रहो! उस स्थान से होकर मत जाओ। वहाँ अरामी सैनिक छिपे हैं!”
10. इस्राएल के राजा ने उस स्थान पर जिसके विषय में परमेश्वर के जन (एलीशा) ने चेतावनी दी थी, अपने व्यक्तियों को संदेश भेजा और इस्राएल के राजा ने बहुत से पुरुषों को बचा लिया।
11. अराम का राजा इससे बहुत घबराया। अराम के राजा ने अपने सैनिक अधिकारियों को बुलाया, और उनसे पूछा, “मुझे बताओ कि इस्राएल के राजा के लिये जासूसी कौन कर रहा है।”
12. अराम के राजा के सैनिक अधिकारियों में से एक ने कहा, “मेरे प्रभु और राजा, हम में से कोई भी जासूस नहीं है! एलीशा, इस्राएल का नबी इस्राएल के राजा को अनेक गुप्त सूचनाएं दे सकता है, यहाँ तक कि आप जो अपने बिस्तर में कहेंगे, उसकी भी!”
13. अराम के राजा ने कहा, “एलीशा का पता लगाओ और मैं उसे पकड़ने के लिये आदमियों को भेजूँगा।” सेवकों ने अराम के राजा से कहा, “एलीशा दोतान में है!”
14. तब अराम के राजा ने घोड़े, रथ और विशाल सेना को दोतान को भेजा। वे रात को पहुँचे और उन्होंने नगर को घेर लिया।
15. एलीशा के सेवक उस सुबह को जल्दी उठे। एक सेवक बाहर गया और उसने एक सेना को घोड़ों और रथों के साथ नगर के चारों ओर देखा। एलीशा के सेवक ने एलीशा से कहा, “ओह, मेरे स्वामी हम क्या कर सकते हैं”
16. एलीशा ने कहा, “डरो नहीं! वह सेना जो हमारे लिये युद्ध करती है, उस सेना से बड़ी है जो अराम के लिये युद्ध करती है!”
17. तब एलीशा ने प्रार्थना की और कहा, “यहोवा, मैं तुझसे प्रार्थना करता हूँ कि तू मेरे सेवक की आँखें खोल जिससे वह देख सके।” यहोवा ने युवक की आँखे खोलीं और सेवक ने देखा कि पूरा पर्वत अग्नि के घोड़ों और रथों से ढका पड़ा था। वे सभी एलीशा के चारों ओर थे!
18. ये आग के घोड़े और रथ एलीशा के पास आए। एलीशा ने यहोवा से प्रार्थना की और कहा, “मैं प्रार्थना करता हूँ कि तू इन लोगों को अन्धा कर दे।” तब यहोवा ने अरामी सेना को अन्धा कर दिया, जैसे एलीशा ने प्रार्थना की थी।
19. एलीशा ने अरामी सेना से कहा, “यह उचित मार्ग नहीं है। यह उपयुक्त नगर नहीं है। मेरे पीछे आओ। मैं उस व्यक्ति के पास तुम्हें ले जाऊँगा जिसकी खोज तुम कर रहे हो।” तब एलीशा अरामी सेना को शोमरोन ले गया।
20. जब वे शोमरोन पहुँचे तो एलीशा ने कहा, “यहोवा, इन लोगों की आँखे खोल दे जिससे ये देख सकें।” तब यहोवा ने उनकी आँखें खोल दीं और अरामी सेना ने देखा कि वह शोमरोन नगर में थे।
21. इस्राएल के राजा ने अरामी सेना को देखा। इस्राएल के राजा ने एलीशा से पूछा, “मेरे पिता, क्या मैं इन्हें मार डालूँ क्या मैं इन्हें मार डालूँ”
22. एलीशा ने उत्तर दिया, “नहीं, इन्हें मारो मत। तुम उन लोगों को नहीं मारते जिन्हें तुम युद्ध में अपनी तलवार और धनुष—बाण के बल से पकड़ते हो। अरामी सेना को कुछ रोटी—पानी दो। उन्हें खाने—पीने दो। तब इन्हें अपने स्वामी के पास लौट जाने दो।”
23. इस्राएल के राजा ने अरामी सेना के लिये बहुत सा भोजन तैयार कराया। अरामी सेना ने खाया—पीया। तब इस्राएल के राजा ने अरामी सेना को उनके घर वापस भेज दिया। अरामी सेना अपने स्वामी के पास घर लौट गई। अरामी लोगों ने इसके बाद इस्राएल पर आक्रमण करने के लिये फिर कोई सेना नहीं भेजी।
24. जब यह सब हो गया तो अराम के राजा बेन्हदद ने अपनी सारी सेना इकट्ठा की और वह शोमरोन नगर पर घेरा डालने और उस पर आक्रमण करने गया।
25. सैनिकों ने लोगों को नगर में भोजन सामग्री भी नहीं लाने दी। इसलिये शोमरोन में भयंकर भूखमरी का समय आ गया। यह शोमरोन में इतना भयंकर था कि एक गधे का सिर चाँदी के अस्सी सिक्कों में बिकने लगा और कबूतर की एक पिन्ट बीट की कीमत पाँच चाँदी के सिक्के थे।
26. इस्राएल का राजा नगर की प्राचीर पर घूम रहा था। एक स्त्री ने चिल्लाकर उसे पुकारा। उस स्त्री ने कहा, “मेरे प्रभु और राजा, कृपया मेरी सहायता करें!”
27. इस्राएल के राजा ने कहा, “यदि यहोवा तुम्हारी सहायता नहीं करता तो मैं कैसे तुमको सहायता दे सकता हूँ मेरे पास तुमको देने को कुछ भी नहीं है। खलिहानों से कोई अन्न नहीं आया, या दाखमधु के कारखाने से कोई दाखमधु नहीं आई।”
28. तब इस्राएल के राजा ने उस स्त्री से पूछा, “तुम्हारी परेशानी क्या है?” स्त्री ने जवाब दिया, “इस स्त्री ने मुझसे कहा, ‘अपने पुत्र को मुझे दो जिससे हम उसे मार डालें और उसे आज खा लें। तब हम अपने पुत्र को कल खायेंगे।’
29. अत: हम ने अपने पुत्र को पकाया और खाया। तब दूसरे दिन मैंने इस स्त्री से कहा, ‘अपने पुत्र को दो जिससे हम उसे मार सकें और खा सकें।’ किन्तु उसने अपने पुत्र को छिपा दिया है।”
30. जब राजा ने उस स्त्री की बातें सुनीं तो उसने अपने वस्त्रों को अपनी परेशानी व्यक्त करने के लिये फाड़ डाला। जब राजा प्राचीर से होकर चला तो लोगों ने देखा कि वह अपने पहनावे के नीचे मोटे वस्त्र पहने था जिससे पता चलता था कि वह बहुत दुःखी और परेशान है।
31. राजा ने कहा, “परमेश्वर मुझे दण्डित करे यदि शापात के पुत्र एलीशा का सिर इस दिन के अन्त तक भी उसके धड़ पर रह जाये।”
32. राजा ने एलीशा के पास एक सन्देशवाहक भेजा। एलीशा अपने घर में बैठा था और अग्रज (प्रमुख) उसके साथ बैठे थे। सन्देशवाहक के आने से पहले एलीशा ने प्रमुखों से कहा, “देखो, वह हत्यारे का पुत्र (इस्राएल का राजा) लोगों को मेरा सिर काटने को भेज रहा है। जब सन्देशवाहक आये तो दरवाजा बन्द कर लेना। दरवाजे को बन्द रखो और उसे घुसने मत दो। मैं उसके पीछे उसके स्वामी के आने वाले कदमों की आवाज सुन रहा हूँ!”
33. जिस समय एलीशा अग्रजों (प्रमुखों) से बातें कर ही रहा था, सन्देशवाहक उसके पास आया। सन्देश यह थाः “यह विपत्ति यहोवा की ओर से आई है! मैं यहोवा की प्रतीक्षा आगे और क्यों करुँ”

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